Thursday, December 31, 2009

घनी अँधेरी रात हो

HAPPY NEW YEAR 2010 TO ALL OF YOU......

कैसे हो दोस्तों? सब खैरियत तो है ना? मैं यहाँ एकदम ठीक हूँ।
दोस्तों new year ka time है, इतना अच्छा समां हो रहा है, सभी लोग मस्ती कर रहे हैं, और जो नहीं कर रहे हैं तो वो भी करो यार... टेंशन नहीं लेने का... अभी मस्ती का टाइम है मस्ती करो और मेरी इन चंद lines के भी मज़े लो।

घनी अँधेरी रात हो,

चाँद चाँदनी साथ हो,

तारों की बारात हो,

शबनम की बरसात हो,

आँखों में सवालात हो,

फिर...

फिर उससे मुलाकात हो,

प्यार भरी कोई बात हो,

दिल में जज़्बात हो,

हाथों में हाथ हो,

काश पूरा ये ख़यालात हो,

घनी अँधेरी रात हो.......


Friday, November 27, 2009

लबों पे ना लेंगे तेरा नाम हम

ह्म्म्म......

कैसे हैं मेरे प्यारे दोस्त लोग.... उम्मीद और दुआ करता हूँ की सब सही-सलामत होंगे।
अरे भई कभी हमें भी कोई दुआ सलाम का पैगाम भेज दिया करो। ये आप लोगों के प्यार भरे सन्देश ही तो हैं जो हमें जीवट बनाते हैं। (अएं... ये कुछ ज़ादा ही technical सा नहीं हो गया? )
तो लो अब हिंदी में सुन लो... अबे तुम्हारे भेजे में कभी मेरे को e-mail, sms या call करने की नहीं आती? सब भूल गए मुझे। चुन-चुन के बदला लूँगा। याद रखो।
मैं एकदम ठीक हूँ। (कोई नहीं पूछ रहा लेकिन फिर भी बता रहा हूँ।)
अब सीधे पॉइंट पर आता हूँ। जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि मेरी body शेर-ओ-शायरी के virus से ग्रस्त है। तो जब कभी भी उसका असर मेरे डोल्लो-शोल्लो पर होता है तो मजबूरन मेरे को हाथ चलाने पड़ते हैं। मतलब कि एक और नयी शायरी फिर से आप सब लोगो के लिए लिखनी पड़ती है। तो इस बार जो शायरी निकली है उसपे ज़रा गौर फरमाइये और बताइये कि कैसी लगी।

भूल जाना चाहता हूँ वो बातें, ख्यालों में तेरे गुज़री रातें,
वो रूठ कर तेरा मुस्कुराना, हँस-हँस कर गुस्सा दिखाना,

भूल जाना चाहता हूँ वो लम्हे सारे, आँखों में बसे सपने प्यारे,
वो शिकवे तेरे, वो तेरे गिले, पहली पहली बार जब हम थे मिले,

भूल जाना चाहता हूँ वो सब रास्ते, जिन पर था चला तेरे वास्ते,
वो तारीख़ वो मंज़र, जब हम थे संग, हँसते गाते खिलखिलाते तेरे रंग,

भूल जाना चाहता हूँ वो किनारे का समंदर, तेरा अक्स जो छुपा है दिल के अन्दर,
वो डगर जो तेरे घर को जाती है, हर चीज़ जो तेरी याद दिलाती है,

बस याद रखना चाहता हूँ मैं वो शाम, तुझसे बिछड़ने का तकदीर का पैगाम,
वो दी हुई ज़बान, वो खायी कसम, लबों पे ना लेंगे तेरा नाम हम......
लबों पे ना लेंगे तेरा नाम हम......


Friday, October 30, 2009

शायरी की दुनिया में एंट्री

hi दोस्तों,

सबसे पहले तो आप सब से माफ़ी चाहूँगा, इतने लंबे वक्त के बाद आप से मुखातिब होने के लिए। दरअसल कुछ तकनीकी समस्या की वजह से कंप्यूटर काम नहीं कर रहा था इसीलिए delay कुछ ज़्यादा ही हो गया।
मैं जानता हूँ कि आप सब बेताब हो रहे होंगे मेरी story सुनने के लिए....
क्या... भूल गए... अरे यार वही story जिसके बारे में मैंने अपनी पिछली पोस्ट में ज़िक्र करा था। नहीं याद आया... यार तुम्हारी तो यादाश्त बहुत कमजोर है। बादाम खाया करो इससे यादाश्त तेज़ होती है। मैं भी खाता हूँ काफ़ी टाइम से। mmmmm...... but याद नहीं आ रहा कि कितने टाइम से। खैर इस topic को यहीं बंद करो।
हाँ तो मै बात कर रहा था अपने शेर-ओ-शायरी कि दुनिया में एंट्री वाली स्टोरी की। तो कहानी शुरू होती है जब मैंने स्नातक (graduation) में प्रवेश लिया था।
नया कॉलेज, नया समां, नया माहौल तो ज़ाहिर सी बात है कि नए दोस्त भी। जिस शख्स से मेरी वहां सबसे पहले दोस्ती हुई उस महानुभाव का नाम है कपिल। जैसे जैसे हमारी मित्रता बढ़ी वैसे वैसे हमें उसके गुण दोषों के दर्शन भी होने शुरू हो गए। तो एक दिन हमें उसकी इस quality का भी पता चला। अरे वही... शेर वेर लिखने वाली।
उसने हमे अपनी लिखी हुई कुछ कविता एंड शेर सुनाये। अब भईया सुन कर हमे काफ़ी प्रसन्नता वाली feeling हुई और इसी प्रसन्नता के साथ शेर-ओ-शायरी के वायरस ने हमारी बॉडी में एंट्री मार ली, और हम पर एकदम से 3rd डिग्री वाला अटैक दे मारा। जिसका असर आज भी जब तब देखने को मिलता रहता है। तो उस पहले अटैक के फलस्वरूप जो lines मेरे जेहन से बाहर आयीं वो मैं यहाँ पेश करने जा रहा हूँ। please झेल लेना। घबराना बिल्कुल मत।
चेतावनी: कमजोर दिल वाले इससे आगे न पढ़े। और अगर पढ़ते हैं तो पढ़ने के बाद होने वाले किसी भी असर के लिए मैं उत्तरदायी नहीं होऊँगा।

इन हवाओं से, इन घटाओं से,
इन महकी हुई बहारों से,
पूंछता हूँ तेरा पता
इस माटी से, इस घाटी से,
इस कल-कल करते पानी से,
कहता हूँ कुछ तो बता
इस ज़मीं से, इस आसमां से,
इस सूनी पड़ी फिजां से,
कहता हूँ सुन तो मेरी रज़ा
इस दुनिया से, इसके दस्तूर से,
मेरे दिल-ए-मजबूर से,
पूंछता हूँ मेरी खता
इस जन्नत से, इसकी रौनक से,
इसमे फैली खुशियों की दौलत से,
कहता हूँ सुन तो ज़रा.
इस धूप से, इस छाँव से,
दुनिया की सारी राहों से,
माँगता हूँ उसको पास ला
इस हरियाली से, पेड़ की डाली से,
इस झूमती धान की बाली से,
कहता हूँ मेरा संदेश पंहुचा
कि कारवें के संग निकले थे हम,
रास्ते में तेरा घर पड़ा,
कारवाँ चलता चला गया,
मैं तेरी राह में रह गया खड़ा
इसीलिए कहता हूँ कि तू,
अब जल्दी से चली ,
अगर तू अब ना आई,
तो हो जायेगी मेरे जीवन की घड़ी पूरी,
और तू पछता कर रह जायेगी... अधूरी


आखिरी लाइन तक पढ़ने और झेलने के लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ।

Thursday, September 10, 2009

मन नहीं करता

hey friends,

how are you? केम छो? माजा मा छो?
भई सबसे पहले तो सभी दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों (viewers, listeners and readers) का मैं तहे दिल से धन्यवाद करना चाहूँगा कि आप सभी ने मुझे इतना प्यार दिया और प्रोत्साहित किया इतनी अच्छी टिप्पणियाँ देकर।
आप सभी का बहुत-2 वो... वो क्या कहते हैं... शुक्रिया, प्रक्रिया। :D
मुझे मालूम है कि मेरे कुछ दोस्त, भाई-बंधु इस बात से काफी आश्चर्यचकित (surprised) होंगे कि मैं थोड़ी-बहुत शायरी भी कर लेता हूँ। वो अपना सर खुजा-2 कर सोच रहे होंगे कि उनके सामने तो कभी ऐसा मौका नहीं पड़ा जब मैंने कोई शेर-वेर सुनाया हो "मेरा खुद का लिखा" कह कर। But friends please don't get angry। "गुश्शा" मत होना। अरे यही तो है "other side of mine!!!" रे। और यही बात तो मेरे blog के नाम को सार्थक (signify) करती है।
दोस्तों मेरे शेर-ओ-शायरी की दुनिया में entry मारने की कहानी तो मैं आपको अपनी next post में बताऊँगा और मैं अपनी लिखी हुई उस पहली कविता से भी पर्दा उठा कर उसे आपके सामने पेश करूँगा जिसको पढ़कर आप मुझे दाद तो बिल्कुल ही नहीं देने वाले। खैर इस बारे में बाद में चिंता करूँगा। फिलहाल तो ये कुछ पंक्तियाँ, आपको, आपके लिए, मेरे द्वारा।
To you, for you, by ME। :)

नींद आती है पर सोने का मन नहीं करता,
मदहोशी छाती है पर खोने मन नहीं करता,
दोस्त तो बहुत हैं पर मिलने का मन नहीं करता,
आँखें भर आती हैं पर रोने का मन नहीं करता,
महफिल में तो होते हैं पर बोलने का मन नहीं करता,
कई राज़ हैं इस दिल में पर खोलने का मन नहीं करता,
तेरे पास आकर दूर होने का मन नहीं करता,
तुझे सोच कर कुछ सोचने का मन नहीं करता,
जो साथ ना हो तू तो ना जाने क्यों जिंदा रहने का मन नहीं करता,
क्यों जिंदा रहने का मन नहीं करता....


Monday, August 17, 2009

शरारत

हैलो दोस्तों,

मेरी last पोस्ट के बाद काफी गैप हो गया ये पोस्ट लिखने में। कभी ऑफिस में busy तो कभी viral fever हो गया तो कभी घूमने चला गया। इन्ही सब व्यस्तताओं के कारण नया post नहीं लिख पाया। मूड तो बना था but समय की तंगी।
well I am back with some new "shayari". A mischievous" one. देखिये title भी मैंने कैसा रखा है "शरारत"!!! अब वाकई में शरारत है या नहीं, ये तो आप लोग ही judge करो।
आप सोच रहे होगे की आज शरारत वाली शायरी? बात ये है कि यार यहाँ मौसम इतना अच्छा हो रहा है तो ऐसे मौसम में थोड़ा रूमानी (romantic) टाइप वाली शायरी तो बनती है ना। भई मौसम को भी तो सम्मान देना पड़ता है।
डम डम डिगा डिगा मौसम भीगा भीगाsss...
अरे नहीं नहीं ये मेरी "शरारत" नहीं है। ये तो मौसम के ऊपर गाना याद आ गया था। :D

तो दोस्तों आपका ज़्यादा बेकीमती oh sorry, बेशकीमती time utilize ना करते हुए, पेश है "शरारत":

उनकी आँखों में प्यार है हम जानते हैं,
हमारी बातों में प्यार है वो जानते हैं,

उनकी धड़कन में प्यार है हम जानते हैं,
हमारे पागलपन में प्यार है वो जानते हैं,

उनके रूठने में प्यार है हम जानते हैं,
हमारे डांटने में प्यार है वो जानते हैं,

उनकी खामोशी में प्यार है हम जानते हैं,
हमारी मदहोशी में प्यार है वो जानते हैं,

वो जानकर तड़पाते हैं हम जानते हैं,
हम तड़पना चाहते हैं वो जानते हैं,

ये जानकर भी शरारत करने से,
ना वो मानते हैं ना हम मानते हैं.....


Wednesday, July 22, 2009

कभी-कभी

हैलो दोस्तों,

कैसे हो? कैसे लगी मेरी पहली post? ज्यादा प्रतिक्रियाएं और टिप्पणियाँ (reactions and comments) नहीं आये पर कोई बात नहीं। I am happy.
अगर किसी के blog पर टिप्पणियाँ नहीं आतीं तो लिखना बंद कर देना चाहिए क्या? मैं ऐसा नहीं मानता।
भई blog शुरू करने से पहले आपने किसी के साथ कोई अनुबंध (agreement) थोड़े ही किया था कि टिप्पणी अवश्य आएगी। अंतरजाल (internet) पर घूमते फिरते आये, blog पढ़ा और चले गए। कोई चोर बाज़ार का concept थोड़े ही है कि blog पढ़ लिया तो टिपियाना ही पड़ेगा। (दाम पूछ लिया तो खरीदना ही पड़ेगा वाला।)
मन करा तो टिप्पणी की, नहीं करा तो नहीं की। लेकिन फिर भी हर blogger की यही ख्वाहिश होती है कि उसका blog comments से अटा-पटा रहे। (read between the lines. छुपा हुआ मतलब समझो।)
मेरी ये poem मेरे उन नामुराद, बदबख्त, कम्बख्त दोस्तों के नाम जिन्होंने मेरी post पर टिपियाया नहीं। (अब तो टिपिया दो या और गाली सुनोगे?)
खैर आप poem पढिये, मैं pizza खाता हूँ। वैसे अजीब बात है, चीज़ है खाने की पर लिखते हैं "पीजा"

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं,
जब अपने ही दिल तोड़ जाते हैं,

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे मंज़र आते हैं,
जब अपने ही रिश्ते हो बंजर जाते हैं,

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे तूफां आते हैं,
जब अपने ही घोंट अरमां जाते हैं,

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे अंधेर आते हैं,
जब अपने ही मुँह फेर जाते हैं,

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे हालात आते हैं,
जब अपने ही छोड़ साथ जाते हैं,

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे कल आते हैं,
जब अपने ही बच के निकल जाते हैं,

कभी-कभी..... कभी-कभी.....


Monday, July 13, 2009

कुछ मेरे बारे में

हैलो दोस्तों,

सबसे पहले तो आपको thank you कि आप मेरे ब्लॉग पर आए। पहला-पहला ब्लॉग लिखते हुए काफ़ी feel good हो रहा है। :)
पिछले काफ़ी time से ब्लॉगस बहुत popular हो रहे हैं।
मैंने भी काफ़ी सोचा विचारा और आख़िरकार सूचना तकनीक (information technology) की इस विधा पर हाथ आजमाने की ठान ली।
जब blogger.com पर आया तो मैं ब्लॉग से जुड़ी समस्याओं से रूबरू हुआ। सबसे पहली समस्या तो यही खड़ी हो गई की ब्लॉग का नाम क्या रखा जाए? टाइटिल क्या रखूँ?
काफ़ी विचार विमर्श और खोजबीन के बाद मुझे ये URL http://unveilingmayank.blogspot.com/ उपलब्ध मिला। बिना एक क्षण गँवाए मैंने इस पर मोहर लगा दी।
अब आपको ये नाम रखने के पीछे का secret भी बता दूँ। तो बात ऐसी है दोस्तों कि मेरा मानना है कि जैसे हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं (कृपया अमिताभ बच्चन का शोले वाला सिक्का छोड़ दें ), उसी तरह हर बात हर चीज़ की भी 2 side होती हैं। तो यहाँ पर आपको दूसरी side देखने का मौका मिलेगा। obviously mine.
अब ब्लॉग तो बन गया लेकिन फिर एक नई परेशानी आड़े आ गई। "अपने बारे में क्या लिखूं?" इस गंभीर प्रॉब्लम का निदान (solution) किया मेरे मित्र मनीष ने।
उसने सुझाव दिया कि मुझे किसी शेर या कविता से शुरुआत करनी चाहिए वो भी अपनी लिखी हुई।
(अबे ये लिखता भी है.... खी खी खी ) कृपया ऐसा ना सोचें। यही तो है other side of mine.
तो दोस्तों अब ज़्यादा वक़्त ना लेते हुए मैं पेश करता हूँ मेरी लिखी हुई mind it मेरी लिखी हुई कुछ lines.
शायरी कविता या नज़्म, चाहे जो नाम दीजिये,
घुटनों पर ज़ोर मत डालिए हुजूर, मज़ा लीजिये। :)

नफ़रत में प्यार की एक नज़र ढूंढता हूँ,
सुनसान रास्तों में हमसफ़र ढूंढ़ता हूँ,

तन्हाइयों में महफ़िल ढूंढ़ता हूँ,
बीच साग़र में साहिल ढूंढ़ता हूँ,

खामोशी में आवाज़ ढूंढ़ता हूँ,
धडकनों में साज़ ढूंढ़ता हूँ,

खाली पैमानों में जाम ढूंढ़ता हूँ,
कांटो में गुलफ़ाम ढूंढ़ता हूँ,

हसीन सुबह रंगीं शाम ढूंढ़ता हूँ,
अन्जान नामों में तेरा नाम ढूंढ़ता हूँ,

तू दूर है फिर भी तुझको अपने पास ढूंढ़ता हूँ..... अपने पास ढूंढ़ता ूँ.....