Saturday, November 16, 2013

सोचा ना था - भाग 1

दोस्तों हम लोगों की दिनचर्या (daily routine) में अक्सर ऐसा होता रहता है कि जिसके होने के बाद हम कहते या सोचते हैं कि "सोचा ना था ऐसा हो जायेगा"।
अगर आपने मेरा एक पुराना blog post मैं तुझको पाना चाहता हूँ पढ़ा हो तो शायद आपको याद होगा कि उसमे मैंने लिखा था "इतना कुछ हो गया जो मैंने सोचा भी नहीं था"। आज जो शायरी मैं यहाँ लिखने जा रहा हूँ उसमे मैंने उन सुखानुभूति (euphoria) के मनोभावों (feelings) को शाब्दिक रूप देने का प्रयास किया है।

आपको एक बात और बता दूं कि ये शायरी मैंने ख़ास अपनी ज़िन्दगी के हमसफ़र के लिये लिखी थी। आज इस शायरी को सार्वजनिक (public) करने के बाद मेरे साथ ऐसी कुछ अप्रत्याशित (unexpected) घटना घटने की संभावना है जिसमें "आम आदमी पार्टी" के चुनाव चिन्ह का भी भरपूर प्रयोग हो सकता है। जिसके बाद मैं शायद सिर्फ़ इतना ही कह सकूँगा कि "सोचा ना था ऐसा हो जायेगा"।

क्या आपने शीर्षक (title) में लिखे शब्द "भाग 1" पर ध्यान दिया? अब आप सोच रहे होंगे कि "भाग 1 का मतलब होता है part 1 इसका मतलब कि part 2 भी आयेगा क्या?" जी हाँ।  Part 2 भी आयेगा।
(अबे यार… अभी पहला तो पढ़ा नहीं है और तू दूसरे के नाम से डरा रहा है। कितना पकायेगा?) अगर किसी ने ऐसा सोचने कि हिम्मत भी की ना तो मैं व्यक्तिगत रूप से (personally) मिलकर पकाऊंगा… मतलब कि सुनाऊंगा।

हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। शायरी आपको कैसी लगी बताइयेगा ज़रूर।


सोचा ना था ऐसा हो जायेगा,
एक नज़र में वो इतना भा जायेगा,
लबों से ना कहेगा कुछ भी,
बस इकरार में सर को नवायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

दीदार को अपने वो तरसाता है,
बेक़रार इस दिल को कर जाता है,
लाख़ मनाने पर इक झलक दिखलायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

नखरा करना ना आता था उसको,
सजना सँवरना ना आता था उसको,
मेरी खातिर काजल भी लगायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

इस कदर बसेगा ज़ेहन में मेरे,
ख़्वाबों में लगने लगेंगे फेरे,
कि आईना भी उसका अक्स दिखलायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

बातों में रहता है अपनी उलझता,
खुद के वो मन को नहीं समझता,
पर मेरे बारे में मुझ ही को बतलायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

अदाओं में बसी है जिसके नज़ाकत,
चेहरे से झलकती है जिसके नफ़ासत,
पाक क़दमों से मेरे आशियां में आयेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

सोचा ना था ऐसा हो जायेगा…