Saturday, March 3, 2012

झोंका हवा का

ना ना ना... ये मत सोचना की मैं "हम दिल दे चुके सनम" चलचित्र का गाना लिखने वाला हूँ। वो गाना "महबूब आलम कोतवाल" ने लिखा है और मैं उस पर अपना कोई हक़ नहीं जमाने वाला। ये तो मेरी नयी शायरी का शीर्षक है जो कि मेरी मूल रचना (original writing) है।

मैं जो भी लिखता हूँ वह मेरा स्वयं रचयित होता है और इस बात के लिए तो रजनीकांत भी मेरी तारीफ़ करता है। (अबे हँसो मत।)

और जैसा कि कहते हैं ना कि "उम्मीद पर तो दुनिया कायम है" वैसे ही हर बार की तरह मैं इस बार भी उम्मीद करता हूँ कि आपको ये शायरी भी पसंद आएगी।

बताइएगा ज़रूर, जो पसंद आये वो भी और जो नापसंद आये वो भी। (सुधरने का मौका तो मुझे मिलता रहना चाहिए, भले ही मैं सुधरने की कोशिश भी ना करूँ। ही ही ही...)


झोंका हवा का जब उसके बालों को सहलाता है,
जब हौले से उसके गालों को छूकर जाता है,
करता है अठखेलियाँ जब उसके झुमके से,
मेरा रश्क बढ़ता जाता है, मेरा रश्क बढ़ता जाता है।

अपने ज़ोर से जब उसकी पलकों को झपकाता है,
अपने गुज़रने की आवाज़ उसके कानों में सुनाता है,
छेड़ता है कम्बख्त जब उसके दुपट्टे को,
मुझे गुस्सा दिलाता है, मुझे गुस्सा दिलाता है।

गर्म होकर जब उसके माथे पर शिकन लाता है,
कभी होकर सर्द उसके हाथों को सिकुड़ाता  है,
करता है परेशां जब उसको गर्द से,
मेरा दुश्मन बन जाता है, मेरा दुश्मन बन जाता है।

तपती धूप में जब ठंडा होकर आता है,
सुहाने मौसम को जब उसकी तरफ रूझाता है,
लाता है मुस्कान जब उसके चेहरे पर,
मुझे अपना मुरीद बनाता है, अपना मुरीद बनाता है.....