Friday, November 27, 2009

लबों पे ना लेंगे तेरा नाम हम

ह्म्म्म......

कैसे हैं मेरे प्यारे दोस्त लोग.... उम्मीद और दुआ करता हूँ की सब सही-सलामत होंगे।
अरे भई कभी हमें भी कोई दुआ सलाम का पैगाम भेज दिया करो। ये आप लोगों के प्यार भरे सन्देश ही तो हैं जो हमें जीवट बनाते हैं। (अएं... ये कुछ ज़ादा ही technical सा नहीं हो गया? )
तो लो अब हिंदी में सुन लो... अबे तुम्हारे भेजे में कभी मेरे को e-mail, sms या call करने की नहीं आती? सब भूल गए मुझे। चुन-चुन के बदला लूँगा। याद रखो।
मैं एकदम ठीक हूँ। (कोई नहीं पूछ रहा लेकिन फिर भी बता रहा हूँ।)
अब सीधे पॉइंट पर आता हूँ। जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि मेरी body शेर-ओ-शायरी के virus से ग्रस्त है। तो जब कभी भी उसका असर मेरे डोल्लो-शोल्लो पर होता है तो मजबूरन मेरे को हाथ चलाने पड़ते हैं। मतलब कि एक और नयी शायरी फिर से आप सब लोगो के लिए लिखनी पड़ती है। तो इस बार जो शायरी निकली है उसपे ज़रा गौर फरमाइये और बताइये कि कैसी लगी।

भूल जाना चाहता हूँ वो बातें, ख्यालों में तेरे गुज़री रातें,
वो रूठ कर तेरा मुस्कुराना, हँस-हँस कर गुस्सा दिखाना,

भूल जाना चाहता हूँ वो लम्हे सारे, आँखों में बसे सपने प्यारे,
वो शिकवे तेरे, वो तेरे गिले, पहली पहली बार जब हम थे मिले,

भूल जाना चाहता हूँ वो सब रास्ते, जिन पर था चला तेरे वास्ते,
वो तारीख़ वो मंज़र, जब हम थे संग, हँसते गाते खिलखिलाते तेरे रंग,

भूल जाना चाहता हूँ वो किनारे का समंदर, तेरा अक्स जो छुपा है दिल के अन्दर,
वो डगर जो तेरे घर को जाती है, हर चीज़ जो तेरी याद दिलाती है,

बस याद रखना चाहता हूँ मैं वो शाम, तुझसे बिछड़ने का तकदीर का पैगाम,
वो दी हुई ज़बान, वो खायी कसम, लबों पे ना लेंगे तेरा नाम हम......
लबों पे ना लेंगे तेरा नाम हम......