Friday, October 30, 2009

शायरी की दुनिया में एंट्री

hi दोस्तों,

सबसे पहले तो आप सब से माफ़ी चाहूँगा, इतने लंबे वक्त के बाद आप से मुखातिब होने के लिए। दरअसल कुछ तकनीकी समस्या की वजह से कंप्यूटर काम नहीं कर रहा था इसीलिए delay कुछ ज़्यादा ही हो गया।
मैं जानता हूँ कि आप सब बेताब हो रहे होंगे मेरी story सुनने के लिए....
क्या... भूल गए... अरे यार वही story जिसके बारे में मैंने अपनी पिछली पोस्ट में ज़िक्र करा था। नहीं याद आया... यार तुम्हारी तो यादाश्त बहुत कमजोर है। बादाम खाया करो इससे यादाश्त तेज़ होती है। मैं भी खाता हूँ काफ़ी टाइम से। mmmmm...... but याद नहीं आ रहा कि कितने टाइम से। खैर इस topic को यहीं बंद करो।
हाँ तो मै बात कर रहा था अपने शेर-ओ-शायरी कि दुनिया में एंट्री वाली स्टोरी की। तो कहानी शुरू होती है जब मैंने स्नातक (graduation) में प्रवेश लिया था।
नया कॉलेज, नया समां, नया माहौल तो ज़ाहिर सी बात है कि नए दोस्त भी। जिस शख्स से मेरी वहां सबसे पहले दोस्ती हुई उस महानुभाव का नाम है कपिल। जैसे जैसे हमारी मित्रता बढ़ी वैसे वैसे हमें उसके गुण दोषों के दर्शन भी होने शुरू हो गए। तो एक दिन हमें उसकी इस quality का भी पता चला। अरे वही... शेर वेर लिखने वाली।
उसने हमे अपनी लिखी हुई कुछ कविता एंड शेर सुनाये। अब भईया सुन कर हमे काफ़ी प्रसन्नता वाली feeling हुई और इसी प्रसन्नता के साथ शेर-ओ-शायरी के वायरस ने हमारी बॉडी में एंट्री मार ली, और हम पर एकदम से 3rd डिग्री वाला अटैक दे मारा। जिसका असर आज भी जब तब देखने को मिलता रहता है। तो उस पहले अटैक के फलस्वरूप जो lines मेरे जेहन से बाहर आयीं वो मैं यहाँ पेश करने जा रहा हूँ। please झेल लेना। घबराना बिल्कुल मत।
चेतावनी: कमजोर दिल वाले इससे आगे न पढ़े। और अगर पढ़ते हैं तो पढ़ने के बाद होने वाले किसी भी असर के लिए मैं उत्तरदायी नहीं होऊँगा।

इन हवाओं से, इन घटाओं से,
इन महकी हुई बहारों से,
पूंछता हूँ तेरा पता
इस माटी से, इस घाटी से,
इस कल-कल करते पानी से,
कहता हूँ कुछ तो बता
इस ज़मीं से, इस आसमां से,
इस सूनी पड़ी फिजां से,
कहता हूँ सुन तो मेरी रज़ा
इस दुनिया से, इसके दस्तूर से,
मेरे दिल-ए-मजबूर से,
पूंछता हूँ मेरी खता
इस जन्नत से, इसकी रौनक से,
इसमे फैली खुशियों की दौलत से,
कहता हूँ सुन तो ज़रा.
इस धूप से, इस छाँव से,
दुनिया की सारी राहों से,
माँगता हूँ उसको पास ला
इस हरियाली से, पेड़ की डाली से,
इस झूमती धान की बाली से,
कहता हूँ मेरा संदेश पंहुचा
कि कारवें के संग निकले थे हम,
रास्ते में तेरा घर पड़ा,
कारवाँ चलता चला गया,
मैं तेरी राह में रह गया खड़ा
इसीलिए कहता हूँ कि तू,
अब जल्दी से चली ,
अगर तू अब ना आई,
तो हो जायेगी मेरे जीवन की घड़ी पूरी,
और तू पछता कर रह जायेगी... अधूरी


आखिरी लाइन तक पढ़ने और झेलने के लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ।