Sunday, August 8, 2010

मैं तुझको पाना चाहता हूँ

अज़ी मैंने कहा क्या हाल चाल हैं दोस्त लोगों के??
सबसे पहले my humble apologies.... अब इतने लम्बे अरसे के बाद post लिख रहा हूँ तो पहले sorry बोलना तो बनता है ना.... (अबे ज़्यादा खुश मत होना सिर्फ़ formality के लिए बोल रहा हूँ।)
क्या करूँ... पिछले कुछ महीनों में इतना कुछ हो गया जो मैंने सोचा भी नहीं था। (सपने में सपना देखते हुए भी नहीं!!!) something bad, something good and something superb.
इतना सब होने के असर का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हो कि शेर-ओ-शायरी virus भी मेरी body में चुपचाप पड़ा रहा। ज़्यादा नहीं उछला !?
आगे आगे देखते हैं कि होता है क्या? या यूँ कहूँ कि क्या क्या....
खैर आपको बता दूं कि कुछ ऐसा भी हो गया है जिसको मैं साधारण शब्दों में बता नहीं सकता। मतलब कि आम अल्फ़ाज़ों में बयां नहीं कर सकता।
hehehe... तो आप समझ ही गए होंगे कि virus ने फिर से अपना असर दिखा दिया है। :)
तो अब मैं इस बात को उसी जाने-पहचाने अंदाज़ में बयां करने जा रहा हूँ... (अरे यारों वोई तरीका जो तुम लोगाँ के भेजाँ में घुसता भई)


झलक जो देखी तेरी, मंज़र सारे भूल गया,
जाने क्या मौसम था, सावन के झूले झूल गया,
तेरी हर अदा पे मैं, मिट-मर जाना चाहता हूँ,
मैं तुझको पाना चाहता हूँ।

खोया-खोया रहता हूँ, मुझको तो कोई काम नहीं,
शब से सहर हो जाती है, आँखों में नींद का नाम नहीं,
तेरी जुल्फों की छाँव में सो जाना चाहता हूँ,
मैं तुझको पाना चाहता हूँ।

तेरी नज़रों में झाँकू तो, दुनिया जन्नत सी लगती है,
चिलमन जो उनपे जाए, खुदा की हरकत लगती है,
तेरी आँखों में ज़िन्दगी जी जाना चाहता हूँ,
मैं तुझको पाना चाहता हूँ।

मुलाकात का पैगाम, क़ासिद से कहलाया है,
वो रकीब लाज़वाब ही, रूखसत हो के आया है,
कितनी शिद्दत से प्यार करूँ, ये समझाना चाहता हूँ,
मैं तुझको पाना चाहता हूँ।

दर पे आया तेरे, बन के मैं फ़रियादी सा,
करूँ इंतज़ा कबसे, कर दे एक इशारा सा,
तेरी इक हाँ के लिए ज़माने से लड़ जाना चाहता हूँ,
मैं तुझको पाना चाहता हूँ।

मैं तुझको पाना चाहता हूँ.....