Thursday, December 24, 2020

सोचा ना था - भाग 2

 भाइयों और बहनों, 7 साल के लम्बे अंतराल के बाद मुझे याद आया कि पिछली वाली कविता का भाग 2 तो मैंने प्रकाशित (publish) ही नहीं करा और सर्वप्रथम मैं इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
मित्रों, इसका कारण है दैनिक जीवन की व्यस्तता। 
एक कार्य सम्पूर्ण नहीं होता कि दूसरा, तीसरा, चौथा पंक्ति में आकर घूरने लगते हैं। समय बे-समय दूरभाष घनघनाने लगता है। कभी loan वाला, कभी क्रेडिट कार्ड वाला, कभी बीमा वाला, कभी घर-दुकान बेचने वाला, कभी हॉलिडे पैकेज वाला, कभी मोबाइल नंबर porting वाला। अमां यार कोई बात हुई ये? कभी कभी तो लगता है कि ये दूरभाष केवल इन्हीं सब से बात करने के लिए लिया है।
ख़ैर ज़्यादा समय ना लेते हुए मैं कविता पूरी करता हूँ। कविता पढ़ते हुए कोई आपको विचलित ना करे इसलिए अपने दूरभाष को मौन प्रणाली (silent mode) में प्रवर्तित कर लें।


सोचा ना था ऐसा हो जायेगा…

ना मिले यादों से जिसकी फुर्सत,
रखे बेक़रार नफ़्स को जिसकी फ़ुर्क़त,
वो अज़ीज़ ऐसा दिलनशीन हो जायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

जो जगायेगा अरमां बेजान दिल में,
देगा साथ मेरा हर मुश्किल में,
आहिस्ता से मेरी रूह को छू जाएगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

ये बंदा जो उनका नाज़ बने,
जज़्बात अगर अल्फ़ाज़ बनें,
हर कागज़ स्याही से भर जायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

होंठ खोल कर भी चुप रहेगा,
आँखों से मुझसे कुछ-कुछ कहेगा,
नींदें उड़ा कर सारी रात जगायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

मैं अपने वक़्त की चोरी करूँगा,
चुपके-चुपके शायरी-शेर लिखूंगा,
मुझसे महफ़िल में कसीदे भी पढ़वाएगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

तसव्वुर में था जो मेरे समाया,
ख्यालों में रहता था छुपा छुपाया,
पीछे से आकर मुझको चौंकाएगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

पैग़ाम-ए -खुदा पढ़ लिया हमने,
फ़ैसला-ए -ज़िंदगी कर लिया हमने,
अब हमेशा के लिए वो मेरा हो जायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

जो दास्तां जो किस्सा जो कहानी है,
उस अफ़साने की इबारत लिखी जानी है,
ये नाचीज़ उसका कातिब बन जायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

जुस्तज़ू थी मुझको जिस जवाब की,
आरज़ू थी मुझको इक गुलाब की,
सारा गुलशन मेरे अंजुमन में आएगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

जिस परीवश की रही है मुझे तिशनगी,
करूँगा इबादत उसी की बन्दगी,
आब-ए-चश्म ना उसका सहा जाएगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

अब्सार में उसके असरार था कोई,
तबस्सुम में उसके अस्बाब था कोई,
इल्म ना था मेरा नाम निकल आएगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

बेकस बेज़ार बेखुद था ये मन,
बदख्वाब बदख़्तर बदगुज़र था जीवन,
उस आशना के नूर से गुलज़ार हो जायेगा,
सोचा ना था ऐसा हो जायेगा।

सोचा ना था ऐसा हो जायेगा…

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